Wednesday, October 22, 2008
खास लोग, आम लोग
कुछ लोग खास होते हैं तो कुछ आम ।
कुछ खास होते हैं उनके जन्म, भाग्य और परिवार से ।
कुछ खास हो जाते हैं उनके कर्म, सोच और विचार से।
ऐसे ही एक आम शख्स को मैंने खास होते देखा हैं ।
मैंने एक इंसान को, सच में इंसान देखा हैं ।
सुनामी, भूकंप, सुखा, बाढ़ ये भी रंग हैं कुदरत के।
महज़ फूल ही नहीं खारे भी हैं बेशुमार इसके दामन में।
मैंने लोगों को मौत से लड़ते झगड़ते देखा हैं
मैंने बिहार को कोसी झूझते देखा हैं।
जब आम इंसान घिर गए पानी से।
तो खेल शुरु हुआ मौत , लाश और मातम का।
हज़ारो घर टूटे लाखो लोग तबाह हुए।
कितने लोग रहे? जो रहे कब तक रहे? मालूम नहीं!
आम लोग मरते रहे, खपते रहे, बिलखते रहे, पर क्या हासील!
कुछ लोग जो खास होते हैं जन्म, भाग्य और परिवार से वो मौन रहे।
देखते रहे भद्दा तमाशा मौत, मातम और मसीहाई का।
पर एक शख्स और चंद लोग जो आम होकर भी आम न रहे ।
वो उठे, बढे, वो चले एक सहारा बनने।
एक छोटा सा सहारा ही, मगर हैं तो सही!
लोग जुड़ते गए और चंद लोग 'हम' बन गए।
फ़िर सिलसिला शुरू हुआ लोगो की लोटती मुस्कान का।
घर बने, तन ढके, भूख मिटि, रोग कटे और सबसे खासम- खास कुछ अपने मिले।
डबडबाती आखों में खुशी, सूखे- फीके होठो पे मुस्कान , दिल में अहसास अपने पन का देकर,
हम लोग और वो शख्स जो आम दिखता था ,
सब मिसाल बन गए ज़माने के लिए ।
हम आम लोग खास बन गए ज़माने के लिए...
हम आम लोग खास बन गए ज़माने के लिए ...
--
अजय सैनी
Ajay Saini, M.A (P)
Department of Social Work
University of Delhi
कुछ खास होते हैं उनके जन्म, भाग्य और परिवार से ।
कुछ खास हो जाते हैं उनके कर्म, सोच और विचार से।
ऐसे ही एक आम शख्स को मैंने खास होते देखा हैं ।
मैंने एक इंसान को, सच में इंसान देखा हैं ।
सुनामी, भूकंप, सुखा, बाढ़ ये भी रंग हैं कुदरत के।
महज़ फूल ही नहीं खारे भी हैं बेशुमार इसके दामन में।
मैंने लोगों को मौत से लड़ते झगड़ते देखा हैं
मैंने बिहार को कोसी झूझते देखा हैं।
जब आम इंसान घिर गए पानी से।
तो खेल शुरु हुआ मौत , लाश और मातम का।
हज़ारो घर टूटे लाखो लोग तबाह हुए।
कितने लोग रहे? जो रहे कब तक रहे? मालूम नहीं!
आम लोग मरते रहे, खपते रहे, बिलखते रहे, पर क्या हासील!
कुछ लोग जो खास होते हैं जन्म, भाग्य और परिवार से वो मौन रहे।
देखते रहे भद्दा तमाशा मौत, मातम और मसीहाई का।
पर एक शख्स और चंद लोग जो आम होकर भी आम न रहे ।
वो उठे, बढे, वो चले एक सहारा बनने।
एक छोटा सा सहारा ही, मगर हैं तो सही!
लोग जुड़ते गए और चंद लोग 'हम' बन गए।
फ़िर सिलसिला शुरू हुआ लोगो की लोटती मुस्कान का।
घर बने, तन ढके, भूख मिटि, रोग कटे और सबसे खासम- खास कुछ अपने मिले।
डबडबाती आखों में खुशी, सूखे- फीके होठो पे मुस्कान , दिल में अहसास अपने पन का देकर,
हम लोग और वो शख्स जो आम दिखता था ,
सब मिसाल बन गए ज़माने के लिए ।
हम आम लोग खास बन गए ज़माने के लिए...
हम आम लोग खास बन गए ज़माने के लिए ...
--
अजय सैनी
Ajay Saini, M.A (P)
Department of Social Work
University of Delhi
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